प्रेम समर्पण

तुम  अनुपम अलौकिक माया हो, मैं तेरा अभिलाषी हूँ ,

जिस पल से तुझे देखा है उस पल से तेरा दीवाना हूँ ,

वो खूबसूरती वो सादिगी आँखों में बसाए बैठा हूँ,

तेरी मुस्कराहट वो इतराना ,बात-बात पे इठलाना ,

दिल में दबाये बैठा हूँ , कहना चाहूँ पर कह ना पाऊँ ,

मैं दिल का कण -कण  तुझे समर्पित कर आया हूँ।  


तू वसंत ऋतु के जैसी, यौवन तेरा खिलता फूल ,

मैं कोई भ्रमर के जैसा, जिसकी तृष्णा खिलता फूल,

तेरी बोली आम बगीचे की कोयल जैसी, मैं कू-कू  वापिस करता किशोर हूँ ,

तू चन्दन के पेड़ के  जैसी, मैं तुझसे लिपटा भुजंग हूँ,  कहना चाहूँ पर कह ना पाऊँ ,

मैं दिल का कण -कण  तुझे समर्पित कर आया हूँ। 



जीवन में मानो अब मौज है ऐसी, जैसे वर्षा  में नृत्य करे मयूर ,

तू घनघोर घटा की बारिश  जैसी मेरा रोम-रोम  भिंगोया है ,

तू बारिश मैं धुप के जैसा, इश्क़ का इंद्रधनुष सा छाया है ,

तू चलती-फिरती मधुशाला, मैं मय पी मतवाला हूँ  कहना चाहूँ पर कह ना पाऊँ ,

मैं दिल का कण -कण  तुझे समर्पित कर आया हूँ। 



किसने बोला प्रेम गलत है,

लगे जिसमें तन-मन लाज़मी नहीं कि मिलता है|

प्यार में यदि  "भ्रम" न हो तो  ये "अमर " ही रहता है ,

 ना कृष्ण हुए राधे के फिर भी युगों-युगों से उन्हें सब  जपता  है|

हे प्रियतम ! हे प्राण प्रिये! मेरी एक अभिलाषा पूरी कर देना ,

हो सके तो अपना लेना मुझको ,

बदले में मेरे दिल का कण -कण  ले लेना। 


- रघुपति झा

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