लक्ष्य के अभिलाषी
उठो! हे "लक्ष्य के अभिलाषी ", कब तक समय गवांओगे,
व्यर्थ की बातों में उलझ कर क्या अर्थहीन ही रह जाओगे।
पद-पद पर तेरे उलझन होंगे, काटों का तेरा डगर होगा,
मगर इन कंकर पर चलकर तुम लक्ष्य को पा जाओगे।
मनुज वो वीर नहीं जो पीछे हट जाते, हैं वो जो डट जाते,
भारत की भूमि पर तू जन्मा, श्रम तेरा इतिहास है।
खड़े यदि तुम साथ खुद के हर मुसीबत से लड़ जाओगे,
उठो! हे "लक्ष्य के अभिलाषी ", कब तक समय गवांओगे।
माना कि अब तुम टूट चुके, हर ख्वाब से तुम रूठ चुके ,
धीरज भी नहीं बची अब तुम में, हौशला तुम अपना छोड़ चुके।
मंजिल जो भी नहीं मिला तुमको कुशल राहगीर हो जाओगे,
मगर सपने ये तेरे सच होंगे,तुम बहुत नाम कमाओगे,
खाली हाथ आए थे मगर दुनिया को अपना नाम दे जाओगे।
संघर्ष अभी कर लो तुम, युगों-युगों तक गाये जाओगे,
उठो! हे "लक्ष्य के अभिलाषी ", कब तक समय गवांओगे।
- रघुपति झा
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