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प्रेम समर्पण

तुम  अनुपम अलौकिक माया हो, मैं तेरा अभिलाषी हूँ , जिस पल से तुझे देखा है उस पल से तेरा दीवाना हूँ , वो खूबसूरती वो सादिगी आँखों में बसाए बैठा हूँ, तेरी मुस्कराहट वो इतराना ,बात-बात पे इठलाना , दिल में दबाये बैठा हूँ , कहना चाहूँ पर कह ना पाऊँ , मैं दिल का कण -कण  तुझे समर्पित कर आया हूँ।   तू वसंत ऋतु के जैसी, यौवन तेरा खिलता फूल , मैं कोई भ्रमर के जैसा, जिसकी तृष्णा खिलता फूल, तेरी बोली आम बगीचे की कोयल जैसी, मैं कू-कू  वापिस करता किशोर हूँ , तू चन्दन के पेड़ के  जैसी, मैं तुझसे लिपटा भुजंग हूँ,  कहना चाहूँ पर कह ना पाऊँ , मैं दिल का कण -कण  तुझे समर्पित कर आया हूँ।  जीवन में मानो अब मौज है ऐसी, जैसे वर्षा  में नृत्य करे मयूर , तू घनघोर घटा की बारिश  जैसी मेरा रोम-रोम  भिंगोया है , तू बारिश मैं धुप के जैसा, इश्क़ का इंद्रधनुष सा छाया है , तू चलती-फिरती मधुशाला, मैं मय पी मतवाला हूँ  कहना चाहूँ पर कह ना पाऊँ , मैं दिल का कण -कण  तुझे समर्पित कर आया हूँ।  किसने बोला प्रेम गलत है, लगे जिसमें तन-मन लाज़मी नहीं कि मिलता...

संशय

जीवन के इस रणभूमि में , क्या सही है ? क्या गलत है ? मैं खड़ा अर्जुन के भांति, आगे "समर" पीछे वजूद तिरस्कृत है।   कभी मन चाहे गगन को छू लूँ , कभी जीने की तलब  ख़त्म है।  कभी संसार को कुटुम्ब  ये माने, कभी ये खुद से भी घृणित है।  वसुदेव ने गीता का उपदेश दिया था,  सारथी मेरा "मन" इस असमंजस  में , क्या सही है ? क्या गलत है ?  जीवन के इस रणभूमि में , संदेह गलत है, अहं  गलत है।  चंचल मन का सैर गलत है, छल गलत है,डर का हर पल गलत है।  विश्वास "सत्य" है , हिम्मत सच है , आत्म आंकलन का हर पल सही है, डटे  रहने का आत्मबल सही है।  उलझित जीवन को जीना गलत है , हर्षित जीवन में  रहना सही है।  जीवन के इस रणभूमि में , "रघु" सही है, "रघु" गलत है , जीवन जबकि "सही -गलत के बीच फासले का पल है"।  -रघुपति  झा