प्रेम समर्पण
तुम अनुपम अलौकिक माया हो, मैं तेरा अभिलाषी हूँ , जिस पल से तुझे देखा है उस पल से तेरा दीवाना हूँ , वो खूबसूरती वो सादिगी आँखों में बसाए बैठा हूँ, तेरी मुस्कराहट वो इतराना ,बात-बात पे इठलाना , दिल में दबाये बैठा हूँ , कहना चाहूँ पर कह ना पाऊँ , मैं दिल का कण -कण तुझे समर्पित कर आया हूँ। तू वसंत ऋतु के जैसी, यौवन तेरा खिलता फूल , मैं कोई भ्रमर के जैसा, जिसकी तृष्णा खिलता फूल, तेरी बोली आम बगीचे की कोयल जैसी, मैं कू-कू वापिस करता किशोर हूँ , तू चन्दन के पेड़ के जैसी, मैं तुझसे लिपटा भुजंग हूँ, कहना चाहूँ पर कह ना पाऊँ , मैं दिल का कण -कण तुझे समर्पित कर आया हूँ। जीवन में मानो अब मौज है ऐसी, जैसे वर्षा में नृत्य करे मयूर , तू घनघोर घटा की बारिश जैसी मेरा रोम-रोम भिंगोया है , तू बारिश मैं धुप के जैसा, इश्क़ का इंद्रधनुष सा छाया है , तू चलती-फिरती मधुशाला, मैं मय पी मतवाला हूँ कहना चाहूँ पर कह ना पाऊँ , मैं दिल का कण -कण तुझे समर्पित कर आया हूँ। किसने बोला प्रेम गलत है, लगे जिसमें तन-मन लाज़मी नहीं कि मिलता...