GUFTAGU

आज फिर तारो तले गया था  मैं   रात  को ,
कह रही थी चाँदिनी भूल गया क्या अपने वजूद को,
देखे थे जो  सपने मेरी गोद में भूल गया क्या सब वो ,
बेकार की बातों में पड़ा  क्यों भटक रहा दर -बदर
था जो तेरा आत्मविश्वास निगल गया क्या "अहम" वो।
मैं सहम सा उठा ,विचिलित सा हो पड़ा 
कर रहा क्या गलतियाँ  सोचने ये लगा
 चलने  लगी  शीतल सी हवा ,छू  गयी मेरे तन को,
 झकझोर  दिया उसने मेरे अंतर्मन  को। 
नज़र गयी उस चाँद पे  "चेता" रहा  था मुझे 
जीवन की  आपा-धापी  में क्या मिला है तुझे 
सुकून था जो ख़तम हुआ ,बैचैन तू फिर  रहा 
इंसान तूने तो  इंसानियत को ही बेच दिया 
आज फिर तारो तले गया था  मैं   रात  को।

चाँदिनी  थी  रात  मगर ,मैं अँधेरे में था बड़ा ,
क्या सही क्या गलत इस असमंजस में खड़ा।
मेरे सपने और हकीकत में था  फासला बड़ा
भाग-दौड़   थी फ़िज़ूल की कुछ ना  हाथ था लगा।
भावनाएँ   थी  उमड़ रही पर शांतचित   मैं  बैठ गया
अचानक सब ठीक हुआ क्यूंकि ये सोचने  लगा ,
पछतावे का क्या करूं  इसमें है क्या रखा।
जो करू दिल से करूं  ,दिखावे की न ढोंग हो ,
ना ईर्ष्या  ना द्वेष इंसान हूँ  इंसान  बनू यही उद्देश्य  हो।
सुकून था अब मिल गया चाँद भी था ढल गया ,
ढलते  चाँद की गोद  में  "स्वयं" से था मैंने मिल लिया
कल  फिर तारों  तले  जाऊंगा  मैं रात को ,
मैं हूँ "अटल आत्मविश्वासी " बतलाऊंगा ये चाँद को।

                         -रघुपति झा   

Comments

RAGHUPATI JHA said…
PLEASE GIVE YOUR VALUABLE COMMENTS AND SUGGESTION.
Srushti Kulkarni said…
Sundar🌸
Srushti Kulkarni said…
Sundar��
Unknown said…
Very nice one 👌👌👌
Anonymous said…
Khiladi bhaiya������
Huge fan of yours said…
Actually u write very well, reaching deep into the thing...
Everytime I read your articles I get touched..
U pour all your heart there though it is full of emotion and relatable
Unknown said…
Good yar👏👏
Anonymous said…
Well said
Unknown said…
Good, You are on a way to be a poet with deep thoughts.
Anonymous said…
Very nice
Binnu said…
Bhai,bhai,bhai.too deep ,too touching .I loved it.keep it up.god bless.
Anonymous said…
Gajab

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